सपनों के से दिन
पाठ – 2 सपनों के से दिन – गुरदयाल सिंह
प्रश्न 1. कोई भी भाषा आपसी व्यवहार में बाधा नहीं
बनती – पाठ के किस अंश से सिद्ध होता है?
अथवा
पाठ के
आधार पर उदाहरण देकर लिखिए कि कोई भी भाषा आपसी व्यवहार में बाधा नहीं बनती ।
अथवा
बच्चों
का एक दूसरे की भाषा न समझ पाने के पश्चात भी सहजतापूर्वक आपस में खेलना, वर्तमान परिप्रेक्ष्य में मनुष्य को क्या संदेश देता है ?
उत्तर – यह एक वास्तविकता है कि जहाँ दो अलग – अलग
संस्कृतियों के व्यक्तियों के दिल आपस में जुड़ते हैं और उनमें आत्मीयता बढ़ती है,
तो वहाँ भाषा जैसी बाधा अपना कोई प्रभाव नहीं छोड़ पाती । बचपन में लेखक के आधे से
अधिक साथी राजस्थान या हरियाणा से थे, जिनके साथ वे खेलते थे । सबकी बोलियाँ अलग -
अलग थीं । वे एक दूसरे की बोलियाँ कम ही समझ पाते परंतु खेलते समय यह बात ज़रा भी
महसूस नहीं होती । सब की भाषा सब समझ लेते । उनके व्यवहार में भाषा के कारण कोई
अंतर न आता । उनके बीच भाषा कभी भी दीवार बन कर नहीं खड़ी हुई । वस्तुत: जहाँ
सहृदयता होती है, वहाँ बाहरी दीवार टिक नहीं पाती । भाषा या जाति – धर्म की दीवार
भी इसी तरह की दीवार होती है । यह मानव के सद्व्यवहार में बाधा नहीं बन सकती ।
वर्तमान
परिप्रेक्ष्य में यह मनुष्य को संदेश देता है कि हमें धर्म, जाति, भाषा आदि की दीवार आपस में नहीं खड़ी करनी चाहिए और आपसी भाईचारे की भावना को सुदृढ़ करना चाहिए ।
प्रश्न 2. पीटी साहब की ‘शाबाश’ फौज़ के तमगे - सी
क्यों लगती थी ? स्पष्ट कीजिए ।
अथवा
अध्यापक द्वारा विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करना क्यों आवश्यक होता है ? पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर – पीटी साहब प्रीतमचंद बहुत सख़्त अध्यापक थे ।
स्काउटिंग का अभ्यास करते समय पीटी साहब किसी भी बच्चे की ज़रा सी चूक भी बरदाश्त
नहीं करते थे । यदि कोई कतार से सिर इधर – उधर हिला लेता या दूसरा पिंडली खुजलाने
लगता, इस पर वे उस लड़के की ओर बाघ की तरह झपटते और सज़ा भी देते ।
अनुशासनबद्ध पंक्ति में
खड़े बच्चे जब कोई गलती नहीं करते, तो पीटी साहब खुश हो जाते और बच्चों को शाबाशी
देते । अत्यधिक कठोर अनुशासनप्रिय पीटी साहब द्वारा किसी बच्चे को शाबाशी देना
बच्चों में अत्यधिक उत्साह का संचार कर देता था । उन्हें लगने लगता कि उन्होंने
कोई बहुत बड़ा काम किया है, अन्यथा पीटी
साहब की शाबाशी उन्हें प्राप्त नहीं होती । पीटी साहब द्वारा शाबाशी पाना
उन्हें तमगा पाने जैसा लगता था । यह प्रसंग दर्शाता है कि बच्चों में शाबाशी पाने
की कितनी व्यग्रता होती है और किसी की शाबाशी उन्हें एक नई उमंग एवं ऊर्जा से पूरी
तरह भर देती है ।
प्रश्न 3. नई
श्रेणी में जाने और नई कापियों और पुरानी किताबों से आती विशेष गंध से लेखक का
बालमन क्यों उदास हो उठता था ?
अथवा
लेखक
बचपन में पुरानी किताबों को देखकर क्यों उदास हो जाते थे ?
उत्तर – नई श्रेणी में जाने का उत्साह रोचक होता है ।
बच्चों के लिए नई श्रेणी का अर्थ होता है और अधिक कठिन पढ़ाई तथा नए मास्टरों का
अनजाना व्यवहार । साथ ही पुराने अध्यापकों की अपेक्षाएँ भी बढ़ जातीं । उन्हें लगता
कि नई श्रेणी में आने से बच्चे तेज़ और ज़िम्मेदार हो गए हैं और अपेक्षाओं के प्रति
खरा न उतरने पर वे चमड़ी उधेड़ने में भी देर न
लगाते ।
दूसरी ओर बच्चे नई श्रेणी में प्रवेश का इंतज़ार इसलिए भी करते कि उन्हें नई
किताबों और कॉपियों की भी प्राप्ति होगी । नई किताबें उन्हें नवीन ताज़गी का एहसास
करातीं । लेखक के परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, जिस कारण नई पुस्तकों को खरीदना संभव नहीं था । हेडमास्टर जी लेखक को किसी
अमीर घर के बच्चे की पुरानी किताबें लेकर देते । परंतु इन नई कॉपियों और पुरानी किताबों
से आती विशेष गंध लेखक का बालमन उदास कर जातीं क्योंकि काफ़ी बच्चों के पास सब कुछ
नया होता ।
प्रश्न 4. स्काउट परेड करते समय लेखक अपने को
महत्त्वपूर्ण ‘आदमी’ फ़ौजी जवान
क्यों समझने लगता था ?
अथवा
पाठ में
लेखक को कब लगता कि वह भी एक फ़ौजी है ? कारण
सहित लिखिए ।
उत्तर – स्काउट परेड में भाग लेने के लिए लेखक बचपन
में अपने दोस्तों के साथ साफ़ – सुथरे धोबी द्वारा धुले कपड़े , पॉलिश किए हुए बूट तथा जुराबों को पहन कर जब ठक – ठक करके चलता तो वह
अपने आपको फौजी से कम न समझता । विद्यालय में पीटी शिक्षक प्रीतमचंद द्वारा परेड
कराते हुए लेफ्ट – राइट की आवाज़ तथा सीटी की ध्वनि पर बूटों की एड़ियों को दाएँ –
बाएँ मोड़कर ठक – ठक कर कर अकड़कर चलते समय विद्यार्थी अपने को बिलकुल फ़ौजी जवान के
रूप में बहुत महत्त्वपूर्ण व्यक्ति समझते । वर्दी तथा परेड के उत्साह ने उसमें यह
भाव जगाया था । यही कारण था कि स्काउट परेड करते समय लेखक स्वयं को फ़ौजी जवान
समझने लगता था ।
प्रश्न 5. हेडमास्टर शर्मा जी ने पीटी साहब को क्यों
मुअत्तल कर दिया ?
अथवा
मास्टर
प्रीतमचंद विद्यार्थियों को उनके बेहतर भविष्य के लिए दंड दिया करते थे, ऐसी स्थिति में हेडमास्टर शर्मा जी द्वारा उन्हें निलंबित करना अनुचित
व्यवहार था । इस कथन के पक्ष या विपक्ष के आधार पर उत्तर दीजिए ।
अथवा
पाठ
में बच्चों को मारने - पीटने वाले अध्यापकों के प्रति हेडमास्टर जी की क्या धारणा
थी ? जीवन मूल्यों के संदर्भ में उत्तर लिखिए ।
उत्तर – पीटी शिक्षक प्रीतमचंद अत्यधिक कठोर थे ।
बच्चों पर नियंत्रण रखने के लिए कठोर व्यवहार का सहारा लेते थे । वे चौथी कक्षा
में फ़ारसी भी पढ़ाते थे । एक दिन उन्होंने बच्चों को कोई कठिन शब्द – रूप याद करने
के लिए कहा । किसी भी बच्चे को वह याद नहीं हुआ । इस पर उन्होंने उन्हें मुर्गा
बना दिया । बच्चे इसे सहन नहीं कर पाए और कुछ ही देर में लुढ़कने लगे। उसी समय कोमल
– हृदय एवं संवेदनशील हेडमास्टर जी वहाँ से निकले । इन्हें बच्चों का इस तरह दंडित
किया जाना अनुचित लगा । इसी कारण हेड-मास्टर
जी ने शिक्षा विभाग के निदेशक को शिकायत लिख भेजी और प्रीतमचंद जी को नौकरी से
मुअत्तल कर दिया गया ।
हालांकि मानवता के
आधार पर देखें तो इतने छोटे बच्चों को दंडित करना अनुचित है, परंतु विद्यार्थियों को अनुशासन में रखने और उन्हें पढ़ाने के लिए कभी – कभी
उन्हें दंडित भी करना पड़ता है। हेडमास्टर साहब चाहते तो उन्हें चेतावनी देकर छोड़
सकते थे ।
प्रश्न 6. लेखक के अनुसार स्कूल खुशी से भागे जाने की
जगह न लगने पर भी कब और क्यों उसे स्कूल जाना अच्छा लगने लगा ?
अथवा
पाठ में
लेखक को स्कूल जाने का उत्साह नहीं होता था, क्यों ? फिर भी ऐसी कौन सी बात थी जिस कारण उसे स्कूल जाना अच्छा लगने लगा ? कारण सहित स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर – लेखक के अनुसार उन्हें स्कूल जाना बिलकुल
अच्छा नहीं लगता था । चौथी कक्षा तक लेखक अपने कुछ सहपाठियों की तरह रोते – चीखते
ही स्कूल पहुँचता था । उनके मन में स्कूल के प्रति एक प्रकार का भय समाया हुआ था ।
स्कूल में जीवन नीरस तथा कैदी सा- प्रतीत होता था । स्कूल के प्रति लेखक के मन में
निराशा के भाव होते हुए भी धीरे – धीरे स्कूल उसे अच्छा लगने लगा । यह तब संभव हुआ, जब स्काउटिंग के अभ्यास का मौका लेखक को मिला । मैदान में रंग – बिरंगे
झंडे लेकर, गले में रुमाल बाँध कर मास्टर प्रीतमचंद जब परेड
करवाते थे, तो लेखक को बहुत अच्छा लगता था । सब बच्चे ठक – ठक करते राइट टर्न, लेफ्ट
टर्न या अबाउट टर्न करते और मास्टर जी उन्हें शाबाश देते तो लेखक को सारे साल मिले
गुडों से भी ज्यादा अच्छा लगता । धोबी द्वारा धुले कपड़े, पॉलिश
किए हुए बूट तथा जुराबों को पहन कर अपने को बिलकुल फ़ौजी जवान के रूप में बहुत
महत्वपूर्ण व्यक्ति बनने की लालसा ने स्कूल के प्रति उनके भाव को बदल दिया ।
प्रश्न 7. लेखक अपने छात्र जीवन में स्कूल से
छुट्टियों में मिले काम को पूरा करने के लिए क्या – क्या योजनाएँ बनाता तथा उसे
पूरा न कर पाने की स्थित में किसकी भाँति ‘बहादुर’ बनने की कल्पना किया करता?
अथवा
लेखक
ओमा की तरह क्यों बनना चाहता था ? आपके दृष्टिकोण में
लेखक का ओमा की तरह बनना उचित है या अनुचित, पाठ के आधार पर
स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर - लेखक अपने छात्र जीवन में स्कूल की छुट्टियों
का मज़ा यूँ ही नहीं जाने देना चाहता था, लेकिन छुट्टियों में मिले काम को पूरा
करना भी जरूरी होता था । यदि छुट्टियों का काम पूरा किए बिना स्कूल जाता तो
शिक्षकों द्वारा पिटाई का भय होता था । इसलिए मिले हुए काम को पूरा करने के लिए
लेखक समय – सारिणी बनाता । कौन – सा काम, कितना
काम एक दिन में पूरा करना है । लेकिन खेल कूद में लेखक का समय बीत जाता और काम न
हो पाता । धीरे – धीरे समय बीतने लगता तो लेखक ‘ओमा’ नामक ठिगने और बलिष्ठ लड़के जैसा बहादुर बन जाना चाहता था जो उद्दंड था और
काम करने की बजाए पिटना ज्यादा सस्ता सौदा समझता था ।
प्रश्न 8. पाठ में वर्णित घटनाओं के आधार पर पीटी साहब
की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए ।
उत्तर - पीटी साहब की चारित्रिक विशेषताए निम्न हैं –
(क) शारीरिक विशेषता – उनका कद ठिगना और शरीर गठीला
था । चेहरे पर दाग थे और आँखें बाज़ की तरह तेज़ और चमकीली थीं । वे स्काउटिंग के
शिक्षक थे, इस कारण वे अक्सर खाकी ड्रेस में होते
थे । उनके पैरों में मोटे बूट होते थे, जिनकी ठक – ठक की
आवाज़ बच्चों में स्वाभाविक रूप से भय पैदा करती थी ।
(ख) कठोर
व्यवहार – पीटी सर का बच्चों के प्रति व्यवहार बहुत कठोर था । वे बच्चों को
नियंत्रण में रखने के लिए सख़्त सजाएँ देने से नहीं हिककिचाते थे । यहाँ तक कि वे
क्रूरता की हद तक पहुँच जाते थे । उनकी कठोरता ही उनके निलंबन का कारण बनी ।
(ग) अनुशासनप्रिय व भावुक व्यक्ति – वे एक अनुशासनप्रिय
शिक्षक थे । प्रार्थना के समय सभी लड़के अपने कद के अनुसार खड़े होते थे । परंतु
परेड में गलती नहीं करने वालों को वे शाबाशी देना नहीं भूलते थे । वे उपर से कठोर, पर अंदर से भावुक थे । वे अपने पाले हुए तोतों को बादाम खिलाते थे व उनसे
बड़े प्रेम से बातें करते थे ।
(घ) स्वाभिमानी व्यक्ति – वे स्वाभिमानी व्यक्ति थे
। नौकरी से निकाले जाने पर वे हेडमास्टर जी के सामने गिड़गिड़ाए नहीं बल्कि चुपचाप
चले गए ।
प्रश्न 9. विद्यार्थियों को अनुशासन में रखने के लिए
अपनाई गई युक्तियों और वर्तमान में स्वीकृत मान्यताओं के संबंध में अपने विचार
प्रकट कीजिए ।
अथवा
आज की
शिक्षा व्यवस्था में विद्यार्थियों को अनुशासित बनाए रखने के लिए क्या तरीके
निर्धारित हैं ? पाठ में अपनाई गई विधियाँ आज के
संदर्भ में कहाँ तक उचित लगती है ? जीवन मूल्यों के आलोक में
अपने विचार प्रस्तुत कीजिए ।
उत्तर – पाठ में स्कूल में विद्यार्थियों को अनुशासन
में रखने के लिए भयभीत किया जाता था । कठोर दंड व मारपीट तक की युक्तियाँ अपनाई जाती
थीं । पढ़ाई के नाम पर काम का अत्यधिक बोझ विद्यार्थियों पर डाला जाता था ।
वर्तमान समय में शारीरिक
सज़ा देने पर रोक लगा दी गई है । इसे अमानवीय माना गया है। विद्यार्थियों को अनुशासन
में रखने के लिए आर्थिक दंड व निलंबन की कारवाई की जाती है । अध्यापकों को भी
प्रशिक्षित किया जाता है कि वे बच्चों की भावनाओं को समझें । इनके द्वारा किए गए व्यवहार
व कामों के कारण को समझने का प्रयास करें । उन्हें उनकी गलती का एहसास कराएँ तथा
उनके साथ मित्रता व ममता का व्यवहार करें ।
पढ़ाई को व्यवस्थित
करने का प्रयास हुआ है । विद्यार्थियों में काम के बोझ के बदले ‘परियोजना कार्यों’ तथा ‘प्रायोगिक
कक्षा’ के माध्यम से पढ़ाई के प्रति रूचि विकसित की जाती है।
वस्तुत: विद्यार्थियों को अनुशासन में रखने की पुरानी पद्धति, जो पाठ में शिक्षकों द्वारा अपनाई गई थी, उनके मानसिक
तथा व्यक्तित्व के विकास में सहायक नहीं हो सकती । वर्तमान शिक्षा प्रणालियाँ अधिक
तार्किक एवं प्रासंगिक हैं ।
प्रश्न 11. प्रायः अभिभावक बच्चों को खेलकूद में
ज़्यादा रूचि लेने पर रोकते हैं और समय बरबाद न करने की नसीहत देते हैं । बताइए –
(क) खेल आपके लिए क्यों जरूरी है ?
(ख) आप
कौन – से ऐसे नियम कायदों को अपनाएँगे , जिससे
अभिभावकों को आपके खेल पर आपत्ति न हो ?
अथवा
पाठ के आधार पर बताइए कि बच्चों का खेलकूद में
अधिक रूचि अभिभावकों को अप्रिय क्यों लगता था?
अथवा
पढ़ाई के
साथ खेलों का छात्र के जीवन में क्या महत्त्व है और इससे किन जीवन मूल्यों की
प्रेरणा
मिलती है ? स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर – (क) अभिभावक प्राय: बच्चों को खेलकूद में
ज्यादा रूचि लेने से रोकते हैं । वे अपने बच्चों को सफलता के लिए पढ़ाई को ही महत्त्वपूर्ण
मानते हैं, किन्तु जीवन में खेलकूद को नज़र अंदाज़
करना उचित नहीं है । खेलकूद बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए आवश्यक है ।
(ख) खेल
बच्चे को सोच को विस्तृत और विकसित करते हैं । इससे व्यक्तित्व का निर्माण होता है, सहयोग की भावना को नए आयाम मिलते हैं । बच्चों में सामूहिक रूप से काम
करने की भावना का विकास होता है । उनमें अनुशासन विकसित होता है । बच्चे में प्रतिस्पर्धा
तथा प्रतियोगिता हेतु आगे बढ्ने की होड़ और दौड़ में भाग लेने की इच्छा पैदा होती है
। खेलों में भाग लेने से बच्चे को अपना तथा अपने समाज और देश का नाम रोशन करने का
सुअवसर प्राप्त होता है ।
(ग)खेल शरीर के लिए जरूरी है परंतु उतने ही जरूरी अन्य
कार्य भी हैं,जैसे –पढ़ाई इत्यादि। यदि खेल स्वास्थ्य
के लिए है तो पढ़ाई जैसे कार्य भविष्य को सुधारने के लिए आवश्यक हैं ।
विद्यार्थियों को अपना अन्य कार्य भी नियत समय पर करना चाहिए । ज्ञानवर्धक विषयों
पर भी अगर वे उतना ही ध्यान देंगे तो और समय देंगे तो अभिभावकों को भी खेलने पर
आपत्ति नहीं होगी ।
परीक्षापयोगी
प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. शिक्षक की ट्रेनिंग के दौरान बाल –
मनोविज्ञान विषय पढ़ने पर लेखक ने कैसा महसूस किया ?
अथवा
लेखक ने
बच्चों के मनोविज्ञान को कब समझा ? स्कूल
से बचने के लिए कुछ बच्चों ने कौन – सा
नया
रास्ता निकाला ?
प्रश्न 2. लेखक के साथ खेलने वाले बच्चों की स्थिति का
वर्णन करते हुए बताइए कि उन्हें खेलना
कितना
पसंद
था ?
प्रश्न 3. आधी शती पहले पढ़ा गया कौन सा वाक्य लेखक को
याद रहा और क्यों ? जीवन मूल्यों के आधार
पर
प्रमाणित कीजिए ।
प्रश्न 4. लेखक अपने बचपन में गर्मी की छुट्टियाँ कैसे
बिताते थे ?
प्रश्न 5. पाठ के आधार पर लिखिए कि अभिभावकों को
बच्चों की पढ़ाई में रूचि क्यों नहीं थी ? पढ़ाई को
व्यर्थ
समझने में उनके क्या तर्क थे ?
प्रश्न 6. पाठ में वर्णित ओमा जैसे बालकों में सुधार
के लिए पहले शारीरिक दंड का चलन था, किन्तु
आज
कौन सी
युक्तियाँ अपनाई जा रही हैं ? क्या ये युक्तियाँ
जीवन – मूल्यों के विकास में अपना
योगदान
दे रही हैं ?
प्रश्न 7. हेडमास्टर तथा प्रीतमचंद में क्या अंतर था ? स्पष्ट करें ।
प्रश्न 8. लेखक ने अपनी पढ़ाई न छूटने का क्या कारण
बताया ? नई कक्षा के अध्यापकों की क्या अपेक्षाएँ
थीं?
प्रश्न 9. प्राचीन और आधुनिक शिक्षा प्रणाली को पाठ के
आधार पर स्पष्ट कीजिए ।
प्रश्न 10. ‘लेखक और
उसके साथियों के सभी खेल प्रकृति से जुड़े थे’ पाठ के आधार पर
बताइए ।
प्रश्न 11. बचपन में लेखक और उसके साथी ग्रीष्मावकाश
किस प्रकार व्यतीत करते थे ?
प्रश्न 12 . बचपन में लेखक और उसके साथी किसे अपना
नेता मानते थे और क्यों ? पाठ में
उसके
बारे में क्या बताया गया है ?
प्रश्न 13. लेखक को किसके सहारे अपनी पढ़ाई ज़ारी रखनी
पड़ी ? आप गरीब बच्चों की पढ़ाई ज़ारी रखने के
लिए
क्या सुझाव देना चाहेंगे ?
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