आत्मत्राण
पाठ
– 9 आत्मत्राण – रवीन्द्रनाथ ठाकुर
प्रश्न 1. कवि किससे और क्या प्रार्थना कर रहा है ?
उत्तर – कवि ईश्वर से प्रार्थना कर रहा है कि वह उसे
विपत्तियों से उबारने का काम न करें । वे केवल उसकी आंतरिक चेतना
में
ऐसी क्षमता भरने का प्रयास करें,जिससे वह हर मुसीबत
का सामना खुद कर सकें । भगवान से वह सिर्फ इतनी
सहायता
चाहते हैं कि वे केवल इतनी शक्ति दें कि मुसीबत में वह घबराएँ नहीं । वह ईश्वर से
केवल आत्मबल ,
आत्मविश्वास
व पुरुषार्थ चाहते हैं व भयरहित होने का वरदान भी चाहते हैं जिससे वह उसकी सत्ता
पर, उसके प्रति
आस्था
पर संदेह न कर सकें ।
प्रश्न 2. ‘विपदाओं
से मुझे बचाओ, यह मेरी प्रार्थना नहीं’
– कवि इस पंक्ति के द्वारा क्या कहना चाहता है ?
उत्तर – कवि अन्य लोगों की तरह ईश्वर से यह नहीं चाहते
कि भगवान आकर उनकी मदद करें या वो उन्हें कठिन परिस्थितियों
में
न डालें । वह तो चाहते हैं कि ईश्वर चाहे कठिन परिस्थितियों में डालें, पर उन्हें इतनी ताकत व क्षमता दें कि वे
उनका
सामना स्वयं कर सकें । कवि को आत्मविश्वास है कि वह ईश्वर पर निर्भरता की बजाए
उनसे प्राप्त शक्ति से
किसी
भी विपत्ति का सामना करके स्वयं को सार्थक साबित कर सकते हैं ।
प्रश्न 3. कवि
सहायक के न मिलने पर क्या प्रार्थना करता है ?
उत्तर – कवि कहते हैं कि अगर उन्हें सहायक न भी मिले, तो भी उन्हें कोई शिकायत नहीं । वह तो मात्र इतना चाहते हैं कि
उनका
पुरुषार्थ अडिग रहे व उसे किसी सहायता की
आवश्यकता न रहे । कवि ईश्वर से अपना मानसिक बल बनाए
रखने
व संघर्ष – क्षमता में वृद्धि की माँग करते हैं,
ताकि वे उन कठिनाइयों का सामना स्वयं कर सकें ।
प्रश्न 4. अंत में कवि क्या अनुनय करता है ?
उत्तर – अंत में कवि ईश्वर से अनुनय करते हैं कि जब
उनके दिन बहुत बुरे चल रहे हों और पूरी दुनिया उन पर उंगली उठा
रही
हो तब भी ऐसा न हो कि वे ईश्वर पर शंका करें । कवि भगवान से अनुरोध करता है कि
चाहे जीवन में कितनी भी विपरीत
परिस्थितियाँ क्यों न आ जाएँ, उसका विश्वास भगवान
पर से नहीं उठना चाहिए । वह ईश्वर से उसे भयरहित बनाए रखने,
आपदाओं को झेलने तथा उनसे उबरने की क्षमता माँगते हैं ।
प्रश्न 5. ‘आत्मत्राण’ शीर्षक की सार्थकता कविता के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर – ‘आत्मत्राण’ का अर्थ है अपने मन के भय का निवारण कर अपने आप को किसी भी स्थिति में
ऊपर उठाना । कवि
विपदाओं, दुखों तथा पीड़ा से मुक्ति के लिए ईश्वर का आह्वान नहीं करते । वह उस भय
के निवारण के लिए स्वयं को सामर्थ्यवान बनाने की प्रार्थना ईश्वर से करते हैं । वह
अपने अंदर साहस, निर्भयता और संघर्षशीलता की कामना करते हैं।
वह ईश्वर से ‘त्राण’ नहीं तैरने की
क्षमता प्रदान करने की प्रार्थना करते हैं ।
प्रश्न 6. अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए आप प्रार्थना
के अतिरिक्त और क्या –क्या प्रयास करते हैं ? लिखिए।
उत्तर – इंसान अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए
प्रार्थना के अलावा बहुत से कार्य करता है । वह अपने हुनर का प्रयोग करता
है, मेहनत करता है । पूरी लगन से अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए दिन –
रात एक कर देता है । अपनी आत्मिक व शारीरिक शक्ति के बल पर जीवन को नई दिशा देने
का प्रयास करता है ।
प्रश्न 7. क्या कवि की यह प्रार्थना आपको अन्य
प्रार्थना गीतों से अलग लगती है ? यदि हाँ, तो कैसे ?
उत्तर – अधिकतर प्रार्थनाओं में भगवान से कुछ न कुछ
माँगा जाता है । उसमें दास्य भाव, आत्मसमर्पण, सुख – शांति व
कल्याण
की प्रार्थना होती है । इसके अलावा भगवान के रूप और उनकी शक्तियों की प्रशंसा की
जाती है । प्रस्तुत
कविता
में कवि ईश्वर से मात्र इतना चाहते हैं कि वे उन्हें हर कठिन परिस्थिति से निपटने
का साहस दें। वे अपनी तकलीफ़ों का रोना नहीं रोता और न ही उन्हें दूर करने की उनसे
प्रार्थना करता है । वह ईश्वर में आस्था बनी रहने व कर्मशील रहने की प्रार्थना
करता है । बल्कि वह पौरुष की चाह रखता है ताकि वह विपदाओं से भय रहित होकर संघर्ष
कर उन पर विजय प्राप्त कर सके।
प्रश्न (ख) भाव स्पष्ट कीजिए –
1. नत
शिर होकर सुख के दिन में
तव मुख पहचानूँ छिन –
छिन में ।
उत्तर – कवि कहते हैं कि मनुष्य अक्सर ईश्वर को दुख के
दिनों में याद करता है, परंतु वे ईश्वर से कहते
हैं कि मैं मात्र दु ख के
दिनों
में ही नहीं ; बल्कि सुख के दिनों में भी तुम्हें
याद करूँ । मैं सुख में भी हर पल तुम्हारा सिमरन करता रहूँ व तुम्हारी मेहरबानियों
के लिए तुम्हें धन्यवाद देता रहूँ ।
2. हानि
उठानी पड़े जगत में लाभ अगर वंचना रही
तो भी मन में ना मानूँ
क्षय ।
उत्तर – कवि ईश्वर को संबोधित करते हुए कहते हैं कि
अगर संसार में मुझे किसी भी कारणवश किसी भी प्रकार की हानि भी
उठानी
पड़े और लाभ मात्र छल हो तब भी मेरा विश्वास, मेरी
आस्था आप पर से न डिगे । ऐसी विषम परिस्थिति में भी मेरा मनोबल न टूटे ।
3. तरने
की हो शक्ति अनामय
मेरा भार अगर लघु करके न
दो सांत्वना नहीं सही ।
उत्तर – कवि ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि तुम मुझे
स्वस्थ रहने का वरदान दो ताकि मैं अपने जीवन की कठिन परिस्थितियों से
स्वयं
ही निपट सकूँ । फिर चाहे तुम मेरी कठिनाइयों को लघु करके मुझे सांत्वना नहीं भी
दोगे तो भी मुझे कोई शिकायत नहीं होगी । तुम बस मुझे शारीरिक व मानसिक बल प्रदान
कर दो ।
प्रश्न – कविता का प्रतिपाद्य/ संदेश/ उद्देश्य/
प्रेरणा ।
उत्तर – कविता “आत्मत्राण” कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा बांगला भाषा में लिखी अत्यंत प्रेरणादायी
प्रार्थना गीत है, जिसे हजारी
प्रसाद
द्विवेदी द्वारा हिन्दी में अनुदित किया गया है । कवि ने पाठकों को आशावादी रहकर
सदैव संघर्षशील रहने की प्रेरणा दी है । कवि ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहते हैं
कि चाहे आप मुझे विपत्तियों, दुखों, मुसीबतों से न बचाएँ, जब मेरा चित्त मुसीबतों से
घबरा जाए, मैं बेचैन हो जाऊँ तो भले ही आप मुझे सांत्वना न
दें ; चाहे मुझे लाभ की जगह हानि उठानी पड़े ; तब हे ईश्वर ! आप मुझे शारीरिक व मानसिक बल प्रदान करने की कृपा करें ताकि मैं उनको सहर्ष सहन कर सकूँ व
उन पर विजय प्राप्त कर सकूँ । मेरे साहस में कभी कमी न आने पाए ताकि सारा जीवन
रूपी भार मैं सिर झुकाकर अर्थात् आपका आभारी होकर व निरोग रहकर वहन कर सकूँ ।
तात्पर्य यह है कि हम किसी भी परिस्थिति में आत्मबल,
आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता न खोकर दीन – दुखी अथवा असहाय की भाँति विलाप न करें
। चाहे चारों ओर दुख रूपी रात्रि हो तो भी ईश्वर पर कभी भी हम संशय न करें ।
परीक्षापयोगी प्रश्न
1. सिद्ध
कीजिए कि कवि परमात्मा के प्रति प्रबल आस्थावान है ।
2.
दुखों में घिरे होने पर
भी कवि स्वयं से क्या अपेक्षा करता है ?
3.
कवि को परमात्मा से क्या
– क्या अपेक्षा नहीं है ?
4.
‘करुणामय’ शब्द का प्रयोग बार – बार क्यों किया गया है ?
5.
कविता हमें किस प्रकार
की प्रार्थना करने की सलाह देती है ?
6.
कवि ईश्वर से दुख कम
करने की प्रार्थना नहीं करते । वे उनसे क्या माँगते है और क्यों ?
7.
कविता के आधार पर कवि की
उन विशेषताओं का वर्णन कीजिए, जो जीवनोपयोगी
शिक्षा देती हैं ?
8.
कवि ईश्वर से स्वस्थ
रहने की प्रार्थना क्यों कर रहा है ?
9.
कविता हमें ईश्वर के
प्रति कैसा भाव रखने के लिए प्रेरित करती है ?
10. कवि
परमात्मा से सांत्वना क्यों नहीं चाहता ?
11. कवि
ने ईश्वर को क्या कहकर संबोधित किया है और क्यों ?
12. कवि
को ईश्वर के अतिरिक्त और किस पर भरोसा है और क्यों ?
13. कविता
में कवि की आंतरिक भावनाओं की अभिव्यक्ति हुई है ?
14. कवि
ईश्वर को सर्वोच्च मानते हुए भी उससे कुछ क्यों नहीं लेना चाहता ? स्पष्ट कीजिए ।
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